.... *छलनी*......... कठोर हृदय और मैला मन.. अंतिम सच्च नहीं है, ये उजला तन..... प्रेम की राह उसे मैं ले के चला.. इक बार नहीं कई बार छला... विवेक में जिसके बल नहीं है.. वो साथी...नहीं.....वो....छलनी है ... देखो उसका कुंठापन.. जिस पे मेरा... भोलापन..... निर्लज़ की कथा क्या तुमको सुनाउँ.. जिस पे लुटा जीवन संग तन, मन, धन... और, सुनो.!!!उसका वाचालीपन.. महज़ खेल है, सिर्फ विवाह का बंधन... कठोर हृदय और मैला मन.. अंतिम सच्च नहीं है, ये उजला तन... विवेक में जिसके बल नहीं है वो साथी नहीं...?वो...छलनी है... .... *छलनी*......... गीत मेरी कलम से कठोर हृदय और मैला मन.. अंतिम सच्च नहीं है, ये उजला तन.....