डियर दिसंबर डियर दिसंबर सच बता, इस बार तु जा क्यू नही रहा संग तेरा इस बार हमें, कहो भा क्यूं नही रहा माना है तु सरताज ,हर इक बीते बरस का फिर जाने कैसी है तलब, इन अखियन को नव बरस का। कौन जाने उस पार न जाने क्या अफसाना होगा मुकम्मल होगे ख्वाब या वही किस्सा पुराना होगा। उस पार खडी ए मंजिल, दिवास्वप्न है दिखा रहा इस पार तु फलसफा ए जिंदगी है सिखा रहा । सुना है वहां सुनहरे सपने का सुंदर नजराना होगा मुकम्मल होंगे ख्वाब या वही किस्सा पुराना होगा। उलझनों की भीड में फिर खो जाने का डर सता रहा सच बता इस बार तु जा क्यूं नही रहा । ©madhumita mishra #डियर दिसंबर