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उसकी कमीज कई टुकड़ों में सिली थी, विरासत में जिसे ग

उसकी कमीज कई टुकड़ों में सिली थी,
विरासत में जिसे गरीबी मिली थी।
न जाने क्या छुपा रखा था नन्ही हथेलियों में,
इसी उम्र से उलझा है वो किस्मत की पहेलियों में,
वो भीड़ में खड़ा हुआ कुछ सोच रहा था।
औरों के कमीज़ में भी शायद चक्तियाँ खोज रहा था।
हैरत था उसे क्यूँ उसकी ही कमीज जली थी,
उसे विरासत में जिसे गरीबी मिली थी।
कैसे कह दूं मैं कि ये उसका अज़ाब था
तन मैला था जिसका मगर मन साफ था।
सारी ख्वाहिशों को कुचल कर मुस्कान से,
फ़टी जेब में वो अपने, भरे आत्मविश्वास था।
भीड़ में भी मेरी नजर बस उसी पर टिकी थी,
उसे विरासत में जिसे गरीबी मिली थी।
गरीब हूँ मैं अगर तो इसमें मेरा क्या गुनाह है,
कल भी मेरा स्याह था, और आज भी स्याह है।
येही सोचता था क्या वो भीड़ में खड़े खड़े,
या बस दो निवाले के लिए ही, आँखों में चाह है।
काली स्लेट पर उसकी क़िस्मत, कालिख से लिखी थी,
उसे जिसे विरासत में गरीबी मिली थी।
...GARग #NojotoQuote गरीबी| must read
#nojoto #nojotohindi #poetry #kavishala #gareebi
उसकी कमीज कई टुकड़ों में सिली थी,
विरासत में जिसे गरीबी मिली थी।
न जाने क्या छुपा रखा था नन्ही हथेलियों में,
इसी उम्र से उलझा है वो किस्मत की पहेलियों में,
वो भीड़ में खड़ा हुआ कुछ सोच रहा था।
औरों के कमीज़ में भी शायद चक्तियाँ खोज रहा था।
हैरत था उसे क्यूँ उसकी ही कमीज जली थी,
उसे विरासत में जिसे गरीबी मिली थी।
कैसे कह दूं मैं कि ये उसका अज़ाब था
तन मैला था जिसका मगर मन साफ था।
सारी ख्वाहिशों को कुचल कर मुस्कान से,
फ़टी जेब में वो अपने, भरे आत्मविश्वास था।
भीड़ में भी मेरी नजर बस उसी पर टिकी थी,
उसे विरासत में जिसे गरीबी मिली थी।
गरीब हूँ मैं अगर तो इसमें मेरा क्या गुनाह है,
कल भी मेरा स्याह था, और आज भी स्याह है।
येही सोचता था क्या वो भीड़ में खड़े खड़े,
या बस दो निवाले के लिए ही, आँखों में चाह है।
काली स्लेट पर उसकी क़िस्मत, कालिख से लिखी थी,
उसे जिसे विरासत में गरीबी मिली थी।
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