किसी के भी छत पर बैठ जाता, ना धर्म से बंधा होता, ना कर्म से बंधा होता, सवाल कोई उठाता भी ना मुझ पर ना लोग भड़कते मुझ पर, ना शोर करने पर मारते मुझको, मैं पुरी तरहा सारे बंधनो से आजाद होता | मेरी सोच...