ज़िन्दगी भी बड़ी अजीब दौर से गुज़र रही हैं, ना रिश्ते संभल रहे हैं, ना जिंदगी संभल रही हैं, बरसो पुराने रिश्ते खुद ठीक हो रहे हैं , तो बरसो पुराने रिश्ते बिगड़ भी रहे हैं, ना मिज़ाज संभल रहा हैं, ना गुस्सा थम रहा हैं, ना कोई बर्दाश कर रहा हैं , ना खुद किसी का बर्दाश हो रहा हैं, जब तक चुप थी मैं अच्छी थी, अब जवाब दे रही तो मेरी आवाज़ ऊँची हैं, उलझे जिंदगी में ना कोई पकड़ने वाला हैं, ना कोई गले लगाने वाला हैं, चोट बदन पर लगी हैं, लेकिन दर्द दिल में हो रहा है, काश मेरे बिन बोले कोई समझने वाला होता, मतलबी दुनिया में कोई सुने वाला होता, हर कोई अपने तकलीफ़ सुनाना चाहता हैं, लेकिन सुने का वक्त किसी को नहीं हैं, ना जाने कब अनसुने मेरी बातें सच होंगी, ना जाने कब कोई मुझे अपना सा मिलेगा, ना जाने कब मेरी हर बातों को सुने वाला होगा, ना जाने कब मेरे हर दुःख में मेरे साथ खड़े होने वाला होगा, ना जाने कब सिर्फ मुझे पसंद करने वाला मेरे पास होगा , ना जाने कब मेरी ये सारी बातें सच होगी, ना जाने कब? ©anni singh ना जाने कब?