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दास्तान ए मुहब्बत अजीब है न, दूर रहकर भी कोई करीब

दास्तान ए मुहब्बत अजीब है न,
दूर रहकर भी कोई करीब है न!

जान कदमों में रखनी पड़ती है,
इश्क सच में कोई सलीब है न!

जिन हाथों में कोई लकीरें नहीं,
उन्हीं हाथों में मिरा नसीब है न!

उसकी बातों में वफा है ही नहीं,
वो लड़का शायद गरीब है न!

©Riddhi Awasthi
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