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रिश्तो में अब पहले जैसी मिठास कहांँ कच्चे घरों की

रिश्तो में अब पहले जैसी मिठास कहांँ 
कच्चे घरों की मिट्टी वाली खुशबू सा एहसास कहाँ
मर्यादा, संस्कार और समर्पण का एक दूजे के प्रति भाव कहाँ
बारिश की बूंदों को भी प्यासी धरती से मिलने की तड़पन अब कहाँ आजकल मैं महसूस कर रहा हूंँ कि जमाना वाकई बदल गया हैं😒 हमारा समाज और हम सब लोग किस दिशा में जा रहे हैं ✍️हमें पता ही नहीं है,🙂 और लोग यह तो भूल ही गए हैं, कि जीवन सिर्फ एक❣️ ही है, संस्कारों को तो सूली पर चढ़ा ही दिया हैं, संयुक्त परिवारों की तो बात बहुत दूर है😊 घर के 4 सदस्य भी शांति स्थापित करने में असफल है..☹️ अरे भाई ऐसा हो क्या गया है..🤔
दरअसल आदमी की जरूरतें  दिन-ब-दिन इतनी बढ़ती जा रही है जिसकी कोई हद ही नहीं .... दादा दादी जिनकी उम्र मात्र 2-5 साल शेष बची है, बच्चें उनसे बातचीत ही नहीं करते, 🤐🤐 आखिर ऐसा क्यों...??? उन्हें छोटी से छोटी जरूरत के पड़ोसियों को आवाज लगानी पड़ती है आखिर क्यों...?
घोर कलयुग है भाई घोर कलयुग 🙂😒😒😒
#respecteveryone 
#grandparents 
#yqbestquotes 
#जीवनधारा 
#सस्ता_कवि
रिश्तो में अब पहले जैसी मिठास कहांँ 
कच्चे घरों की मिट्टी वाली खुशबू सा एहसास कहाँ
मर्यादा, संस्कार और समर्पण का एक दूजे के प्रति भाव कहाँ
बारिश की बूंदों को भी प्यासी धरती से मिलने की तड़पन अब कहाँ आजकल मैं महसूस कर रहा हूंँ कि जमाना वाकई बदल गया हैं😒 हमारा समाज और हम सब लोग किस दिशा में जा रहे हैं ✍️हमें पता ही नहीं है,🙂 और लोग यह तो भूल ही गए हैं, कि जीवन सिर्फ एक❣️ ही है, संस्कारों को तो सूली पर चढ़ा ही दिया हैं, संयुक्त परिवारों की तो बात बहुत दूर है😊 घर के 4 सदस्य भी शांति स्थापित करने में असफल है..☹️ अरे भाई ऐसा हो क्या गया है..🤔
दरअसल आदमी की जरूरतें  दिन-ब-दिन इतनी बढ़ती जा रही है जिसकी कोई हद ही नहीं .... दादा दादी जिनकी उम्र मात्र 2-5 साल शेष बची है, बच्चें उनसे बातचीत ही नहीं करते, 🤐🤐 आखिर ऐसा क्यों...??? उन्हें छोटी से छोटी जरूरत के पड़ोसियों को आवाज लगानी पड़ती है आखिर क्यों...?
घोर कलयुग है भाई घोर कलयुग 🙂😒😒😒
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