ना जाने कब से जीना छोड़ चुके थे हम उनको देखा तो जीने की ललक मन में जगी हमने तो प्यार पाने की उम्मीद छोड़ ही दी थी एक नज़र में ही हमें उनसे मोहब्बत हो गई उसका हुस्न देख आँखें मेरी मुझसे यूँ झगड़ती रही धड़कने दिल की बेतहाशा इस क़दर बिगड़ती रही बे-वफ़ाओं से कभी ना सिखा हमनें तो सबक़ यारों कमबख़्त इश्क़ की परवान हर घड़ी बस चढ़ती रही © Pradeep Agarwal (अंजान)