कक्ष शीतल है शयन में चिंतन है मार्ग को अवरुद्ध किये यौवन है साहस भटकता बहकता यहाँ राष्ट्र मूढ़ सा तकता हुआ मौन है . अनुभव अतीत को गले लगाए आलोचना में है मग्न मुदित है उद्यमिता उलझी हुई भ्रमित आश्वासनों की बाढ़ से चकित है . किंकर्तव्यमूढ़ सारा वातावरण है मिथ्या पर सत्य का आवरण है उद्विग्न विवेक निराश हो चला उज्ज्वल भविष्य पर ग्रहण है . कविधर्म मेरा कहता है लिखो जो भी घटित होता है लिखो कक्ष धीर का भी अब तपता है शब्द तप्त हैं भी तो क्या, लिखो . धीर लिखो