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गुस्ताख़ियाँ निग़ाहों की तुम्हारी,ख़िलाफ़ हो रही रूह

 गुस्ताख़ियाँ निग़ाहों की तुम्हारी,ख़िलाफ़ हो रही रूह हमसे हमारी..!
दिल को बेचैन बेक़रार कर,इश्क़ की है ये कैसे ख़ुमारी..!

चाहतों की चहल कदमी,दूर नज़रों से होती जा रही..!
ख़्वाबों में खोई हुई है मोहब्बत,ज़िन्दगी की है यही शुमारी..!

जद्दोज़हद है ये कैसी,कैसे अब तक ज़िन्दगी गुज़ारी..!
ख़ुदा ने भी देखो अब तो यूँ ही,ज़िन्दगी में हुस्न परी उतारी..!

भटकती रही दर बदर ज़िन्दगी,बसर हो अब सजी सँवारी..!
प्रेम पथ पे चलते चलते,ज़िन्दगी हुई तुमसे प्यारी..!

दुःख की दस्तक हुई प्रेम की पुस्तक,अस्त तक ज़िन्दगी बीती न्यारी..!
मोहब्बत के पंछी चहचहाते यूँ कि,ख़ूबियाँ ही ख़ूबियाँ नज़र आती सारी..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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