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मानव मन अनवरत भटक रहा मंदिर, मस्ज़िद और देवावास, अ

मानव मन अनवरत भटक रहा
मंदिर, मस्ज़िद और देवावास,
अनगिनत जतन है कर रहा
रख ईश्वर को पाने की आस,
अज्ञानी है ये अचेतन मन
जो इसको नहीं है विश्वास,
इस सृष्टि के कण-कण में है
साकार ब्रह्म ईश्वर का वास।

©Sonal Panwar
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