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मेरे समाज में एक मुद्दा है। सबसे ज्वलंत सबसे महत्व

मेरे समाज में एक मुद्दा है।
सबसे ज्वलंत
सबसे महत्वपूर्ण
मुद्दा है,नारी क्या पहनेगी?
नारी कब, कहाँ और क्या पहनेगी?
वो बचपन में क्या पहनेगी
वो यौवन में क्या पहनेगी
घर के भीतर क्या पहनेगी
घर के बाहर क्या पहनेगी
शयनकक्ष में क्या पहनेगी
रसोईघर में क्या पहनेगी
शादी से पहले क्या पहनेगी
शादी के बाद क्या पहनेगी
अपनी मर्ज़ी से क्या पहनेगी
अपनी अर्थी में क्या पहनेगी
बाबुल के आँगन में क्या पहनेगी
पिया के प्रांगण में क्या पहनेगी
समझ के परे है ये की
नारी ना ये पहनेगी
नारी ना वो पहनेगी
जो नज़रो में पहना तुमने 
नारी बस वो पहनेगी। मैं बेढंगे, बेतरतीब और फूहड़ वस्त्रो के पक्ष में कतई नहीं हूँ और ना ही स्त्री के वस्त्रो के विषय में कट्टरवादी सोच को धारण किये, एक बड़े वर्ग का समर्थन करती हूँ। मुझे बस इस बात पर आश्चर्य है कि क्या वाकई "स्त्री के कपड़े" इतना बड़ा मुद्दा है कि रोज़ देश के किसी कोने में इस मुद्दे पर बहस छिड़ी होती है? क्या एक स्त्री का चरित्र उसके कपड़ो पर ही निर्भर करता है? 
और मुद्दे बहस के लिए बचे ही नहीं है।
बढ़ती जनसंख्या
दम तोड़ती प्रकृति
मरता आदर्श 
नशे से टूटता परिवार 
अबोध बच्चो के समक्ष माता-पिता का हिंसक झगड़ा
मेरे समाज में एक मुद्दा है।
सबसे ज्वलंत
सबसे महत्वपूर्ण
मुद्दा है,नारी क्या पहनेगी?
नारी कब, कहाँ और क्या पहनेगी?
वो बचपन में क्या पहनेगी
वो यौवन में क्या पहनेगी
घर के भीतर क्या पहनेगी
घर के बाहर क्या पहनेगी
शयनकक्ष में क्या पहनेगी
रसोईघर में क्या पहनेगी
शादी से पहले क्या पहनेगी
शादी के बाद क्या पहनेगी
अपनी मर्ज़ी से क्या पहनेगी
अपनी अर्थी में क्या पहनेगी
बाबुल के आँगन में क्या पहनेगी
पिया के प्रांगण में क्या पहनेगी
समझ के परे है ये की
नारी ना ये पहनेगी
नारी ना वो पहनेगी
जो नज़रो में पहना तुमने 
नारी बस वो पहनेगी। मैं बेढंगे, बेतरतीब और फूहड़ वस्त्रो के पक्ष में कतई नहीं हूँ और ना ही स्त्री के वस्त्रो के विषय में कट्टरवादी सोच को धारण किये, एक बड़े वर्ग का समर्थन करती हूँ। मुझे बस इस बात पर आश्चर्य है कि क्या वाकई "स्त्री के कपड़े" इतना बड़ा मुद्दा है कि रोज़ देश के किसी कोने में इस मुद्दे पर बहस छिड़ी होती है? क्या एक स्त्री का चरित्र उसके कपड़ो पर ही निर्भर करता है? 
और मुद्दे बहस के लिए बचे ही नहीं है।
बढ़ती जनसंख्या
दम तोड़ती प्रकृति
मरता आदर्श 
नशे से टूटता परिवार 
अबोध बच्चो के समक्ष माता-पिता का हिंसक झगड़ा

मैं बेढंगे, बेतरतीब और फूहड़ वस्त्रो के पक्ष में कतई नहीं हूँ और ना ही स्त्री के वस्त्रो के विषय में कट्टरवादी सोच को धारण किये, एक बड़े वर्ग का समर्थन करती हूँ। मुझे बस इस बात पर आश्चर्य है कि क्या वाकई "स्त्री के कपड़े" इतना बड़ा मुद्दा है कि रोज़ देश के किसी कोने में इस मुद्दे पर बहस छिड़ी होती है? क्या एक स्त्री का चरित्र उसके कपड़ो पर ही निर्भर करता है? और मुद्दे बहस के लिए बचे ही नहीं है। बढ़ती जनसंख्या दम तोड़ती प्रकृति मरता आदर्श नशे से टूटता परिवार अबोध बच्चो के समक्ष माता-पिता का हिंसक झगड़ा #nojotopoetry #nojotohindi