मैं बेढंगे, बेतरतीब और फूहड़ वस्त्रो के पक्ष में कतई नहीं हूँ और ना ही स्त्री के वस्त्रो के विषय में कट्टरवादी सोच को धारण किये, एक बड़े वर्ग का समर्थन करती हूँ। मुझे बस इस बात पर आश्चर्य है कि क्या वाकई "स्त्री के कपड़े" इतना बड़ा मुद्दा है कि रोज़ देश के किसी कोने में इस मुद्दे पर बहस छिड़ी होती है? क्या एक स्त्री का चरित्र उसके कपड़ो पर ही निर्भर करता है?
और मुद्दे बहस के लिए बचे ही नहीं है।
बढ़ती जनसंख्या
दम तोड़ती प्रकृति
मरता आदर्श
नशे से टूटता परिवार
अबोध बच्चो के समक्ष माता-पिता का हिंसक झगड़ा #nojotopoetry#nojotohindi