खुशियों को ही क्यूँ ना जीने का सबब बना लो, दुख और मायूसी के सूर्य को अस्त कर दो। ख़ुद ही इक अलग दुनिया तुम बनाओ, वहाँ सभी खुशियों का बंदोबस्त कर लो। सब मज़हबों से ऊपर, सिर्फ़ अमन हो वहाँ, नफ़रत और लालच को ध्वस्त कर दो। मोहब्बत का राज हो हर जगह, दिलों में आए स्वार्थ को परास्त कर दो। सिर्फ़ ख़ुद के हित का ना सोचे कोई, सबकी खैरियत को सर्वोपरि कर दो। नामुमकिन को तुम मुमकिन कर दो, अपने वज़ूद को तुम नया आयाम दो। 🌷लेखन संगी🌷 🪴अर्थ:- ख़ुदा-परस्त:- ईश्वर को मानने वाला शाख़-ए-गुल :- फूलों की डाली अहल-ए-जमीन:- धरतीवासी ख़ाक-नशी:- धरती पर बैठनेवाला अलमस्त:- मदहोश