मेरे महबूब की दास्तां किसी को सुनाऊँ तो सुनाऊँ कैसे, हाल-ए-दिल अपना जमाने से मैं छुपाऊँ तो छुपाऊँ कैसे। थोड़ा शर्मीला, हठीला पर लाखों में एक है हमारा सनम, समझता नहीं कोई भी बात समझाऊँ तो समझाऊँ कैसे। ख्वाबों खयालों में आकर तड़पाता है मुझको वो हर पल, कहता है अपनी सुनता नहीं मेरी बताऊँ तो बताऊँ कैसे। मिलने भी आता है मुझसे हमेशा वह अपनी मर्जी से ही, आता नहीं मेरे बुलाने पर कभी बुलाऊँ तो बुलाऊँ कैसे। बाहों में लेकर वस्ल की चाहत को और बढ़ाना चाहते हैं, जताना चाहते हैं बेइंतहा चाहत जताऊंँ तो जताऊँ कैसे । ♥️ Challenge-514 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।