क्यों नहीं मिलेगी मंज़िल, इन रास्तों को ही रातों का बसेरा बना लेगे। हर सुबह उस मंज़िल को, अपने आने का एक और पैग़ाम भिजवा देंगे। कहीं तो ख़तम होते होंगे ये रास्ते, चलते जा मुसाफ़िर हर डगर बसेरा, और एक ना एक दिन मंज़िल पर अपना आशिया जरूर बना लेंगे।। - सौरभ पांचाल #_be_motivate #_target