शक्तिशाली उम्र ने कमजोर कर दिये गहरे शरीर के मजबूत बंधन। अब कांपती शारीरिक दीवारों से, बज उठता करुण क्रंदन।। अब भी ठहरी है सबकी मंजिल, पर धुंधली होती वो एकाग्र नज़र।। किस क्षण से आहुति हो जग में, पर सब पथ पर बढ़ते अभय निड़र।। अविरल छांव अपने चरित्र की, अडिग छाप अपने वैभव की। अशंख-असमान्य परिणाम जीवन मे, है प्रत्यक्ष कमाई छोटे अनुभव की।। अभेद कवच धारक मानव भी, अपने वचन के कारण मरता है। कितना ही प्यारा हो युवा-घाट मगर, जीवन जल तो अविरल बहता है।। dedicated to all old elites😇😇 SAURAV SACHAN LoVe YoU #