खुद की निगाह में निकृष्ट हुई,उड़ गए मेरे आजाद परिंदे, बेगुनाह को सजा ए मौत मिली,अमानव थे वो वहसी दरिंदे, चाह थी उनमोदित हो उन्मुक्त गगन की असीमित सैर करना, अस्मत तार तार किया तब शुरू हुई खुद में वो जहर भरना , आज भी भर न पाया उसका ज़ख्म वो असहनशील सा दर्द, बिलख खुद ही खामोश हो जाती,कोई न बना उसका हमदर्द, न जाने ये जिस्मों का खेल कब ख़त्म होगा,शायद कभी नही, बदला है वक्त,बदला है जमाना,पर उन भेड़ियों की सोच नही, सुन!!!!!!!ये जोश तेरी जवानी का पल में राख कर सकती हूँ, आई जो दुर्गा रूप में मैं सकल सृष्टि को कालग्रास बना सकती हूँ। रचना लिखने से पहले caption को ध्यान से पढ़ ले। कल सुबह 8 बजे तक लिखी गयी रचना ही मान्य होगी। इसके नियम निम्नलिखित हैं : * ऊपर तश्वीर पर दी गई शीर्षक पे एक छोटी सी कविता लिखे।