अब जा रहे हो शहर छोड़ के,तो शिकायत कैसी जब बिछड़ना है तो, बातों की बग़ावत कैसी, जलाया है हमने खुद को,यादों के दीपक से तो हवाओं से बचने की रवायत कैसी , कह रहे हो जाते जाते अच्छा अलविदा ? तो फिर ये इजाज़त की कवायत कैसी , फासले रहे -गर ज़माने के भी , ख़ुद को सौंपा है तुझे तो सियासत कैसी, ©Neetu Sahu #distence #