मेरी किताब 4 📖 अब तक जिंदगी में को ख्याविहश नहीं रही थी, कल कॉलेज में खड़े विचार आया क्यूँ नहीं हम जिन्दगी के हुनर को पंख दे, पर उसके साथ ये भी खड़े थे समाज के लोग परिवार और दोस्त , और तानबाज वो संस्कृति का झुंड जो कोई कुछ करना चाहे तो पैर नहीं खीचते सिधा आदमी को ही खींच लेते हैं, और आदमी के सपने और आदमी हमेशा के लिए दफ़न हो जाता हैं, मैंने हिम्मत करते हुए दोस्तो के सामने विचार रखे पर ज्यादा कोई सहयोग नही था, आधे दोस्त तो आज भी सहयोग नही करते जब मैं संघर्ष को चुनौती देना चाहता हूँ, पर कभी खुद को पागल कर लिया और अब उड़ान को नीचे और सपनो को उड़ाना चाहता हूँ । ज़िन्दगी का मक़सद साफ होता दिख नहीं रहा है पर अक्षर धूँध का कोहरा सुर्य को छुपा नही सकता मेरी किताब 4 📖 अब तक जिंदगी में को ख्याविहश नहीं रही थी, कल कॉलेज में खड़े विचार आया क्यूँ नहीं हम जिन्दगी के हुनर को पंख दे, पर उसके साथ ये भी खड़े थे समाज के लोग परिवार और दोस्त , और तानबाज वो संस्कृति का झुंड जो कोई कुछ करना चाहे तो पैर नहीं खीचते सिधा आदमी को ही खींच लेते हैं, और आदमी के सपने और आदमी हमेशा के लिए दफ़न हो जाता हैं, मैंने हिम्मत करते हुए दोस्तो के सामने विचार रखे पर ज्यादा कोई सहयोग नही था, आधे दोस्त तो आज भी सहयोग नही करते जब मैं संघर्ष को चुनौती देना चाहता हूँ, पर कभी खुद को पागल कर लिया और अब उड़ान को नीचे और सपनो को उड़ाना चाहता हूँ । ज़िन्दगी का मक़सद साफ होता दिख नहीं रहा है पर अक्षर धूँध का कोहरा सुर्य को छुपा नही सकता #sanjaychampapur #champapur #मेरीडायकीकेकुछपन्ने #apanakalamasanjay