मंजिल अनजान थे तुम भी हमसे, अनजान थे हम भी तुमसे। चल रहे थे हम दोनों, अनजान सी ही एक डगर पर। मंजिल का न पाता था, ना दिखता था कोई किनारा। जो मिल गए तुम तो राह- ए -मुश्किल आसान हो गई। जब एक ही थी हमारी मंजिल तो चलते न साथ कैसे? मिलना लिखा था खुदा ने हमारा तो हम कैसे ना मिलते? अब जो मिल गए हैं तो संग ही चलेंगे संग में ही रहेंगे। राहों की हर मुश्किल को हम संग रहकर ही दूर करेंगे। अपने प्यार की राहों पर चलकर अपनी मंजिल को पाएंगे। अपनी मंजिल को पा कर हम उसे बहुत खूबसूरत बनाएंगे। प्यार से रहेंगे वहां और एक सुंदर सा आशियाना बनाएंगे। प्यार की राहों पर खुद ही चलेंगे वह दूसरों को भी सिखाएंगे। -"Ek Soch" #मंजिल #साहित्यिक सहायक