पल्लव की डायरी करवटे जिंदगी की,किस मुकाम पर छोड़ेगी जिंदा लाशो की तरह,आवाम कब तक डोलेगी कुर्सियों की बे रूखी, दामन जनता का कब छोड़ेगी जीने के मूल अधिकारों पर,सरकारे कब दौड़ेगी इधर महँगाई,उधर पेशे तबाह है अर्थव्यवस्था के चक्रव्यूह में हर अभिमन्यु चित पड़ा है सुधबुझ भूलकर डिप्रेशन में,आम आदमी पड़ा है हर राहों पर,लूट का तंत्र खड़ा है सियासतों की मनमानी से लोकतंत्र का मंत्र डूबा पड़ा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #scared इधर महँगाई,उधर पेशे तबाह है #scared