हाँ पछतावा है! बहुत है! बहुत दिल दुखाया मैने! किसी और का नहीं उस व्यक्तिव का जो मेरे अंदर बसता है। और वो है मेरा अपना मन! बहुत ज्यादतियाँ की मैने तुम्हारे साथ! कभी तुम्हें निश्छल, स्वतंत्र बहने ही नहीं दिया! हमेशा बंदिशें लगाई तुम पर! जब जब तुमने कुछ भी अच्छा कहना करना चाहा! मैने उसे अनसुना कर दिया। दूसरों का कहा सुनकर जीने पर मजबूर किया तुम्हें। हमेशा अपने अंतर्मन यानी तुम्हारे बजाए दूसरों को सर्वोपरि रख दूसरों की खुशियों की परवाह की। और इस सबमे गहरी पीड़ा पहुंचाई मैने तुम्हें! तुम कई मर्तबा आहत हुए, तुमने अश्रु बहाए मगर प्रतिकार नहीं किया। कितनी निर्दयी थी न मैं! दूसरों की छोटी छोटी पीड़ाएँ भी मुझे दिखायी दी, लेकिन तुम्हारे घावों को देखकर भी नज़रअंदाज़ कर दिया मैंने। ऐ मन! सच बहुत ज़्यादतियाँ की तुम्हारे साथ, मेरे ही हक़ में कहा तुम्हारा कोई फैसला नहीं मानामैंने। ईश्वर की दी इस अनमोल ज़िन्दगी में मुझे सबसे पहले तुम्हारा ख्याल रखना था, जो मैंने नहीं रखा। सबकी सुनकर तुम्हें उन बातों के आधार पर बदलनेको बारबार मजबूर किया। तुमसे ही बने, ईश्वर के दिये इस सुंदर अस्तित्व की कोई परवाह न की। ये तुम्हारे प्रति, मेरा किया अक्षम्य अपराध है! और में जानती हूँ इसके लिए तुम मुझे कभी माफ नहीं करोगे, क्योंकि वे पल जो जीने से मैने तुम्हें रोका, वे मेरी माफी से वापस न आएँगे! वे मुकाम,जो मुझे दिलाने की भरपूर ललक और कबिलियित थी तुममे, मैंने तुम्हेंहर बार उसे पाने से रोका। वे कभी फिर न मिल पाएँगे। लोगों की भावनाओं की परवाह कर तुम्हारी उस राह में रोड़ा बन,तुम्हें डरा धमका कर चुप बैठाती रही।एक दो बार जब तुमने बगावत कर मंज़िल पाने की और दौड़ लगाई तो आखरी पड़ाव पर मैंने तुम्हे सबका वास्ता दे भावुक कर रोक लिया। तुम्हे स्वसुख, स्वखुशी की परिभाषा समझने ही न दी कभी। इन सबकी माफी नही बस सज़ा होती है। शायद इसीलिए अब तुमने मेरे साथ छोड़ दिया है! है न! इसलिए शायद अब तुम दुखी नही होते, न खुश होते हो, न शिकायते करते हो और न ही अब आँसुओं के जरिए अपना दुख मुझे बताते हो। फिर भी हो सके तो मुझे क्षमा करना। मैं देर से समझ पाई कि मुझ पर पहला हक़ तुम्हारा था। ©Divya Joshi हाँ पछतावा है! बहुत है! बहुत दिल दुखाया मैने! किसी और का नहीं उस व्यक्तिव का जो मेरे अंदर बसता है। और वो है मेरा अपना मन! बहुत ज्यादतियाँ की मैने तुम्हारे साथ! कभी तुम्हें निश्छल, स्वतंत्र बहने ही नहीं दिया! हमेशा बंदिशें लगाई तुम पर!