तुम प्रेम हो, हृदय में बसे हो, प्रिय। मेरे जीवन की पुस्तक के, सुखद अध्याय हो प्रिय।। दो क्षण हमको आज मिले फिर भी ना तुम मेरे साथ प्रिय। विरह की ये पीड़ा सताए यूं क्यों मुझे सताते प्रिय।। विरह था कल तो, मिलन होगा कल बस प्रतीक्षा हैं प्रिय! ये साथ फिर से आएगा।। तुम प्रेम हो...हो।। सब जानते हो तुम प्रिय, फिर अंजान बने क्यों ऐसे ? समझाऊं क्या मैं तुमको अब, बतलाऊं क्या मैं तुमको अब, सब कुछ तुम्हारे सामने प्रिय।। जान कर अंजान क्यों बने रहते हो प्रिय? जरा बताओ ना!! तुम प्रेम हो...हो #तुमप्रेमहो#love#wait#propose#friendship#poetry