सजा-धजा, कुछ ऊंचा एक मचान बैठे उस पर महान -महान होता जिनका गुणगान मंच का मायाजाल आदर और सम्मानो का होता आदान- प्रदान होता जो दिखता नहीं दिखता जो होता नही मंच का मायाजाल। आतुर वक्ता, श्रोता अधीर सबकी अपनी अपनी पीर मैं तेरा गुणगान करूं कर तू मेरा सम्मान मंच का मायाजाल। श्रोता सोच रहा मंच पर आसन पाने का वक्ता खोज रहा ऊपर से ऊपर जाने का मंच का मायाजाल सत्य बैठा नेपथ्य में पड़ता चेहरों की भाषाएं कुछ चेहरे जो खिल उठे कुछ चेहरे मुरझाए मंच का मायाजाल। १६/०९/२०२२ गोपाल कृष्ण गर्ग ©GOPAL KRISHNA GARG #मंच का मायाजाल #cloud