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रुठनें सी लगी हैं जिन्दगी, बेरंग लगें हैं जमाना। अ

रुठनें सी लगी हैं जिन्दगी, बेरंग लगें हैं जमाना।
अपना नहीं यहां कोई, हर कोई लगता हैं बेगाना।।
हर तरफ़ हैं बस शोर शराबे, कैसा हैं यें फ़साना।
उम्मीदों को तोड़ देते, हर कोई करता हैं बहाना।।
ख़ुद भी लगें बेज़ान ही, हर कोई लगें अनजाना।
गुमनामी में जिन्दगी कटें, नहीं लगें पल सुहाना।। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को  प्रतियोगिता:-52 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
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