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छंद बरसाने गोकुल में,रास रचे फागुन में, देखके बिह

छंद 
बरसाने गोकुल में,रास रचे फागुन में,
देखके बिहारी जी को,सुध खोई राधिका।

ग्वाल, बाल लेके संग,घोल लाए श्याम रंग,
मिल सब सखा संग,रंग दई राधिका।

मुरलिया लई हाथ,लेके गोपियों को साथ,
बांसुरी की धुन सुन,बहक गई राधिका।

एसो डारो रंग श्याम, बिसरे न आठों याम,
नाम बस श्याम कौ ही,जप रहीं राधिका।

©Dr Nutan Sharma Naval
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