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आखिरी फैसला जिन्दा हूं कब तलक ये भरोसा नही रहा क़ा

आखिरी फैसला जिन्दा हूं कब तलक ये भरोसा नही रहा
क़ातिल के हाथ में मिरी शहरग को दे दिया।
जलते रहे गरीब के घर हर रोज ही यहां
मकतूल ही को सबने कातिल बता दिया ॥
जिन्दा थे जिनकी आस पर वो गैर हो गए
दामन छुड़ा के गैर को रहबर बना दिया।
ऐसे लुटा जहाज मिरे कारवां के साथ
बुझता हुआ दिया मिरी हस्ती को बना दिया ॥ #akhiri
आखिरी फैसला जिन्दा हूं कब तलक ये भरोसा नही रहा
क़ातिल के हाथ में मिरी शहरग को दे दिया।
जलते रहे गरीब के घर हर रोज ही यहां
मकतूल ही को सबने कातिल बता दिया ॥
जिन्दा थे जिनकी आस पर वो गैर हो गए
दामन छुड़ा के गैर को रहबर बना दिया।
ऐसे लुटा जहाज मिरे कारवां के साथ
बुझता हुआ दिया मिरी हस्ती को बना दिया ॥ #akhiri
rabbanikhan8410

Rabbani Khan

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