#OpenPoetry पहली #दफ़ा ... गज भर की साड़ी पहनी गई ... स्कूल की विदाई पार्टी में.. वो साड़ी थी #आज़ादी की उड़ान... ख़ुद की इच्छा से बाँधी साड़ी... #पाँव फँसे तो सबने कहा... "ज़रा सम्भलकर"....! फिर पहनी ... गज भर की साड़ी #शादी के बाद.. इस दफ़ा साड़ी को मैंने नहीं #साड़ी ने मुझे बाँधा.. आज़ादी की उड़ान .. ज़मीं पर रोक दी गई.. पाँव #फँसे तो सबने कहा... "इतना भी नहीं सम्भाल सकती"... फ़क़त एक #कपड़ा ही तो था... बस मायने बदल गए वक़्त के साथ....! #OpenPoetry