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#OpenPoetry पहली #दफ़ा ... गज भर की साड़ी पहनी गई ..

#OpenPoetry पहली #दफ़ा ...
गज भर की साड़ी पहनी गई ...
स्कूल की विदाई पार्टी में..
वो साड़ी थी #आज़ादी की उड़ान...
ख़ुद की इच्छा से बाँधी साड़ी...
#पाँव फँसे तो सबने कहा...
"ज़रा सम्भलकर"....!
फिर पहनी ...
गज भर की साड़ी #शादी के बाद..
इस दफ़ा साड़ी को मैंने नहीं 
#साड़ी ने मुझे बाँधा..
आज़ादी की उड़ान ..
ज़मीं पर रोक दी गई..
पाँव #फँसे तो सबने कहा...
"इतना भी नहीं सम्भाल सकती"...
फ़क़त एक #कपड़ा ही तो था...
बस मायने बदल गए वक़्त के साथ....! #OpenPoetry
#OpenPoetry पहली #दफ़ा ...
गज भर की साड़ी पहनी गई ...
स्कूल की विदाई पार्टी में..
वो साड़ी थी #आज़ादी की उड़ान...
ख़ुद की इच्छा से बाँधी साड़ी...
#पाँव फँसे तो सबने कहा...
"ज़रा सम्भलकर"....!
फिर पहनी ...
गज भर की साड़ी #शादी के बाद..
इस दफ़ा साड़ी को मैंने नहीं 
#साड़ी ने मुझे बाँधा..
आज़ादी की उड़ान ..
ज़मीं पर रोक दी गई..
पाँव #फँसे तो सबने कहा...
"इतना भी नहीं सम्भाल सकती"...
फ़क़त एक #कपड़ा ही तो था...
बस मायने बदल गए वक़्त के साथ....! #OpenPoetry
pourushi5126

Pourushi

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