आईना रोज़ देखता हूं फिर भी,तक़दीर का लिखा कभी दिखता नहीं बहुत मज़बूत हो जाते हैं लोग तब अक्सर,जब पास खोने को कुछ भी बचता नहीं तुम रोज़ बख़्श देते हो मालिक मुझको,ज़िदंगी के नए इल्ज़ामों से फिर भी फ़ितरत नहीं बदलती है मेरी,दोहरता हूं गलतियों को नए बहानों से गुज़र जाती है जिंदगी भी अक्सर,जीने की तैयारी में हाथ नहीं आता है कुछ भी,ख्वाबों की हिस्सेदारी में जीता नहीं है आज में कोई,लेकिन ये मर्ज़ पुराना है भागता हूं उन मज़िलों के पीछे मैं भी,जिन्हें छोड़ के एक दिन जाना है सूरज-चाँद हैं रोज़ बुलाते,वक्त कभी भी रूकता नहीं बदल जाते है रोज़ लिबास भी लेकिन,हर ऐब छुपाने से छिपता नहीं बदल जाती हैं तारीखें फिर भी,लिखा वक्त का कभी मिटता नहीं रोज़ जलता है एक दिया मंदिर में,अंधेरा दिलों का फिर भी छंटता नही... Abhishek Trehan #आईना #तकदीर #जिंदगी #दिया #शायरी #कविता #हिंदी #yqdidi