कम्बख्त फ़साने मोहब्बत के फ़साने जाने कितने थे बर्बाद होता हर लम्हा तेरे साथ गुजरा था मालूम है कि गया छोड़ कर मुझे, अब तेरे तस्व्वुर को ज़ेहन से मिटाना है कम्बख्त ! इश्क मे तेरे हर फ़साने को जलना है उठते उस धुएं से हर आंशिक को समझना है की संभाल जा नहीं तो दिल टूट जाना है, मेरे जेहन में जो उदाशी छाती है तो मुझे याद तेरी आती है तब मुझे वो बाते याद आती है...! की कम्बख्त ! तू हर निशानी मिटा तो गया दिल में अपना ख्याल ला तो गया, की जब तू खुश होगा तब तेरे दिल में उसकी मोहब्बत की आग फिर सुलगेगी तब तू याद करेगा की काश, तूने वो वक्त बर्बाद किया होता अपने यार कुछ सबक सीख लिया होता तो यूँ बर्बाद न होता मोहब्बत में। इसी बहाने तूने कुछ हाशिल तो कर लिया होता कम्बख्त फ़साने मोहब्बत के फ़साने जाने कितने थे बर्बाद होता हर लम्हा तेरे साथ गुजरा था मालूम है कि गया छोड़ कर मुझे, अब तेरे तस्व्वुर को ज़ेहन से मिटाना है कम्बख्त ! इश्क मे तेरे हर फ़साने को जलना है उठते उस धुएं से हर आंशिक को समझना है