जो मां-बाप हमें छेनी-हथौडी़ की तरह दिन-रात तराशते है और जब हम एक मूर्ति का रूप ले लेते हैं तो अपने अंहकार, पद,प्रतिष्ठा के चलते उस शिल्पकार को भुला देते हैं जिसने अपना पूरा जीवन हमे यहां तक पहुंचाने में लगा दिया,कितने स्वार्थी हो गए हैं हम?? #Manish Kumar Savita #स्वार्थी