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बचपन में मैं थी बहुत शरारती, भाई-बहन के साथ दिन भर

बचपन में मैं थी बहुत शरारती,
भाई-बहन के साथ दिन भर करती थी मस्ती।
कभी इसको मारा तो कभी उसकी चुटिया खींची।
कभी खा गयी इसकी टाॅफी तो कभी छीन ली उसकी लीची।
माँ होती थी परेशान पर व्यर्थ मुझे जो़र से पीटना समझती थी।
कहती होशियार है हर चीज़ में मेरी बच्ची,क्या हुआ कर ली अगर थोडी़ मस्ती।
घर के हमारे ठीक बाजु थी एक सामान की दुकान।
मिल जाती थी आसानी से छडीयाँ बिना मुल्य के यजमान।
शरारती हमें जानकर माँ को लाकर देता था दुकानदार हर बार नयी छडी़
देख उसे डरते थे हम,पर हल्की ही हम पे वो हर बार पडी़
नानी के क्रोध से माँ हमें मारने से डरती थी।
पड़ जाती कभी गुस्से से मार तो नानी मुँह फुलाती थी।
छिपाकर रखती थी माँ की नज़रों से,नानी हर बार एक छडी़।
डाँटती थी दुकानदार को भी,फटकार लगाती थी कडी़।


 यह COLLAB के लिए खुला है।✨💫 

अपने सुसज्जित विचारों व शब्दों के साथ इस पृष्ठभूमि को सजायेंl✒️✒️

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• अपने दिल की भावनाओं को शब्दों में पिरोकर इस अद्भुत पृष्ठभूमि की सुंदरता बढ़ाएं।
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ashagiri4131

Asha Giri

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