जब हलवाई लय में आये, देखो कैसे हाथ घुमाये, श्वेत जलेबी टेढ़ी-मेढ़ी, प्रथम तली ही जाती है नारंगी मीठी-मीठी केवल तब ही बन पाती है अन्त समय जब लेती गोते, ढेर चाशनी खाती है। मेरी कविता कतई उलट है, नीचे से ऊपर जाती है। नन्ही कलिका दिखती सुंदर, इठलाती है झूम-झूमकर, गन्ध तभी महकाती है, भोर समय सूरज से मिलकर, उसको अपना चरम समझकर, जब फूल सुकोमल बन जाती है। मेरी कविता कतई उलट है, नीचे से ऊपर जाती है। जैसे अम्मा की चिठ्ठी में, कुछ न होता खास है गाय दूध खप्पर-छप्पर की, वही पुरानी बात है "और बच्चों को देना प्यार" सच बात बाद में आती है। मेरी कविता कतई उलट है नीचे से ऊपर जाती है। जयों दुल्हन करती श्रंगार, सुर्ख दुपट्टा फूल हज़ार, बिन्दी-चूड़ी-झुमके-हार , सज-धज के रुक जाती है अंत समय फेरे वालों में, मांग पिया से भरवाती है मेरी कविता कतई उलट है, नीचे से ऊपर जाती है। कमी समय की जब हो तुमपे, जब तुमको हो काम ज़रूरी मत पढ़ना कविता तुम पूरी, बस पढ़ लेना तुम आखीर वहीं मिलेंगे तुलसी तुमको, जयशंकर दुष्यंत कबीर और एक आवाज़ ह्रदय की, जो झकझोर सी जाती है। मेरी कविता कतई उलट है, नीचे से ऊपर जाती। मेरी कविता कतई उलट है, नीचे से ऊपर जाती है। #NaveenMahajan उलटी कविता #NaveenMahajan #TumBinIshqNahi