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~ सफ़र-ए-ज़िंदगी ~ खोलकर बैठी हूँ मैं वो लम्हों की

~ सफ़र-ए-ज़िंदगी ~

खोलकर बैठी हूँ मैं
वो लम्हों की किताब;
क्या साथ ले जाऊँ उन हसीं पलों को,
या छोड़ जाऊँ यादों के सहरा में?  

ना कुछ सोचा ना समझा,
बस चलते रहे 
अनजानों की तरह
ज़िंदगी की राह मेंI

(अनुशीर्षक में पढ़े...)  ... दिल में तुफाँ
होठों पर हँसी लिये,
ढूंढते रहे-
अपनी ही ज़िंदगी का पताI

सवालों की कस्ती लेकर
खो जाती हूं कभी कभी, 
ढूंढने उनके जवाब लेकिन
~ सफ़र-ए-ज़िंदगी ~

खोलकर बैठी हूँ मैं
वो लम्हों की किताब;
क्या साथ ले जाऊँ उन हसीं पलों को,
या छोड़ जाऊँ यादों के सहरा में?  

ना कुछ सोचा ना समझा,
बस चलते रहे 
अनजानों की तरह
ज़िंदगी की राह मेंI

(अनुशीर्षक में पढ़े...)  ... दिल में तुफाँ
होठों पर हँसी लिये,
ढूंढते रहे-
अपनी ही ज़िंदगी का पताI

सवालों की कस्ती लेकर
खो जाती हूं कभी कभी, 
ढूंढने उनके जवाब लेकिन
dchowdhury4058

D. Chowdhury

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