काश ये सब झुठ होता। मेरे अरमानो को दबा दियाँ। मुझे जिते जी जैसे दफ्ना दियाँ। में र्घसे बाहर निकलना चाहती थी। अपनी निगाँहो से दुनियाँ को देखना चाहती थी। माँने कहाँ तु बड़ी हो गई। दररिन्दे बाहर हे,र्घसे अकेले कभी जाना नही। काश ये सब झुठ होता। दुनियाँ का सच मुझे सुनायाँ गयाँ। मेरे दिलो दिमाँग में ये ड़र बिठायाँ गयाँ। मैं अंधेरी रातो में बेखौफ, र्घसे बाहर निकल जाती। मैं मैं दुनियाँ को अपनी निगाँहो से देख पाती। मैं ब्लैम कर रही हूँ कमप्लैन कर रही हूँ। काश मेरा लिखके ये ड़र जताना सब झुठ होता। ©pk Love Sayr #pk # सायर। #कास ये सब झुठ होता। #नोजोटो #मेरी कहाँनी।