ग़ैर क्या बदलेंगे । मैंने तो ख़ुद को ही बदलते हुआ पाया हैं इंसानियत तक खो गईं हैं मेरी। मैंने तो ख़ुद आज उस जन्म देने वाले को ख़ुद दुख देते हुए पाया हैं मेरे लिए जो दुनिया से लड़ लेती थी। आज उसी दुनिया के लिये मैंने ख़ुद को उसी माँ से झगड़ते हुए पाया हैं दुनिया के रंग में ,मैं भी रंग गईं सब के साथ मिलकर मैंने भी तुझे खुब तकलिफ पहुंचाया हैं । उन्हे तो मालूम नही हैं तेरी कुर्बानियो का पर मैंने तो जानबूझ कर तेरा दिल दूखाया हैं । तेरे नाम की गाली तक सुन कर । मैंने अपने मुँह पर ताला लगाया हैं । सही मायने में तो मैंने ही तूझे सबसे ज्यादा तकलिफ पहुंचाया हैं । इंसानियत तक खो गईं हैं मेरी। मैंने तो ख़ुद को ही तेरे लिये बदलता हुआ पाया हैं । ##जिंदगी ##रिश्तों की डोर##