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ये आसमाँ में चाँद है या उसके कँगन , उमड़ते बादल

 ये आसमाँ में चाँद है या उसके कँगन ,
उमड़ते  बादल  हैं , या उसका यौवन,
महक उसकी साँसो की है,
 फूल खिला है कोई,
ज़मीं पर तारे बिखरे हैं ,
या चाँद की प्रेयसी है सोई,
क्यूँ मन बार बार ,
उसे ही सोचते रहना चाहता है,
ये दर्द है या उल्फ़त का कोई नाता है,
मुस्कान उसके चेहरे की ,बेचैन करती है अक़्सर,
सोचता रहता हूँ उसे ही ,तन्हा बैठा हुआ छत पर,
ये मोहब्बत नही तो और क्या है,
मेरी आँखें ही ,मेरे दिल का आईना है,
यूँ ही नही बाँधा है उस ख़ुदा ने हमें,
प्रेम की डोर से,
मैं ही बाँह फैलाये मिलूँगा,
हर जन्म के हर छोर पे।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #उसकेकंगन 
#चाँद