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पहले थी मिट्टी की कुटिया, और पीपल की छांव थी बहती

पहले थी मिट्टी की कुटिया, और पीपल की छांव थी
 बहती थी नदियों की धारा, दूर खड़ी इक नाव थी
 पहले थे खेतों में फसलें,  धरती भी उपजाऊ थी
 ठप्प पड़ी है कारीगरी जी, कल तक वही बिकाव थी

 शिक्षा साधन संसाधन का,कहीं नहीं बहाव था
 आज खड़ा है शहर जहां पे, वहीं कभी कोई गांव था 
 पहले थी तकनीक नहीं, न मिलता कोई घाव था
 फेसबुक ट्विटर भी न थे ,मिलता नहीं सुझाव था
चिंता न उतनी थी कलतक,होता नहीं तनाव था
उड़ने की चाहत न होती, धरती पे ही पाँव था 
 थोड़ा खट्टा,थोड़ा मीठा, जगत का ये स्वभाव था
साम दाम षड्यंत्र थे थोड़े, थोड़ा कम अभाव था
 धर्म जात का मसला भी था, सदियों से भेदभाव था
 पर कानूनी दांवपेच कम, अधिक यहाँ सदभाव था
संस्कृति न बिछड़ी, न ही पश्चिम का प्रभाव था
 परंपरा थी विरासतों सी, संस्कारी स्वाभाव था

©Priya Kumari   Niharika #OctoberCreator #Love #Nojoto #Quote #story #Shayari #Poetry #my #me 

#ThenandNow  javed raza Love Prachu Modi  MALLIKA Aarchi Advani
पहले थी मिट्टी की कुटिया, और पीपल की छांव थी
 बहती थी नदियों की धारा, दूर खड़ी इक नाव थी
 पहले थे खेतों में फसलें,  धरती भी उपजाऊ थी
 ठप्प पड़ी है कारीगरी जी, कल तक वही बिकाव थी

 शिक्षा साधन संसाधन का,कहीं नहीं बहाव था
 आज खड़ा है शहर जहां पे, वहीं कभी कोई गांव था 
 पहले थी तकनीक नहीं, न मिलता कोई घाव था
 फेसबुक ट्विटर भी न थे ,मिलता नहीं सुझाव था
चिंता न उतनी थी कलतक,होता नहीं तनाव था
उड़ने की चाहत न होती, धरती पे ही पाँव था 
 थोड़ा खट्टा,थोड़ा मीठा, जगत का ये स्वभाव था
साम दाम षड्यंत्र थे थोड़े, थोड़ा कम अभाव था
 धर्म जात का मसला भी था, सदियों से भेदभाव था
 पर कानूनी दांवपेच कम, अधिक यहाँ सदभाव था
संस्कृति न बिछड़ी, न ही पश्चिम का प्रभाव था
 परंपरा थी विरासतों सी, संस्कारी स्वाभाव था

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