मुझे लगने लगा है कि मैं तुलसी ही हूँ निज अंकुरित निज पल्लवित निज सम्पोषित अपना वहन करनें वाली हर आंगन में हर वन उपवन में पाकर जल की कुछ बूँदें मेरा वजूद लहलहाता है हवा में यूँ घुल जाता पावन उसे बनाता है ! her aagan ki jaan maa...tulsi