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वो दिवारो दर का पत्ता पुछ रही है हवाये भी अब रहे

वो दिवारो दर का पत्ता पुछ रही है 
हवाये भी अब रहे गुजर का पत्ता पुछ रही है
ना जाने किस गली मे ढूंड ती फिरती है 
मोत भी अब मेरे घर का पत्ता पुछ रही है
हनीफ शाह मेरी कलम से
वो दिवारो दर का पत्ता पुछ रही है 
हवाये भी अब रहे गुजर का पत्ता पुछ रही है
ना जाने किस गली मे ढूंड ती फिरती है 
मोत भी अब मेरे घर का पत्ता पुछ रही है
हनीफ शाह मेरी कलम से
hanifshah1798

Hanif Shah

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मेरी कलम से