तकल्लुफ़ ही तो बाकी है वरना जीने की चाह किसे है यहाँ तसव्वुर में ही है जीना सबका हक़ीक़त से वास्ता किसका है यहाँ तबस्सुम दिखाई देती है हर किसी के चेहरे पर अंदाज़-ए-तकल्लुम लाज़वाब है सबका यहाँ कौन किस पर ऐतबार करे इस दुनिया में मतलबी ताल्लुक़ के सिवा क्या बाकी है यहाँ तरन्नुम-ए-ज़िंदगी कैसी चल रही कुछ मालूम नहीं 'अनाम' तू किसकी वाह वाही किए जा रही है यहाँ। यूँ ही..... तकल्लुफ़ :- औपचारिकता अंदाज़-ए-तकल्लुम :- बातचीत का तरीका तरन्नुम ए ज़िंदगी :- ज़िंदगी का तराना