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यूँ दोनो मौन होकर,अपनी जानिब से निकलकर, घटाया था स

यूँ दोनो मौन होकर,अपनी जानिब से निकलकर,
घटाया था समय ने जो उसे जोड़ा करेंगे, 
कभी मिले जो हम,तो क्या कहेंगे,
शायद, 
कुछ पुरानी आदतें साझा करेंगे,
मगर आभाव होगा,कुछ हमारे भाव में,
समय के साथ ही,नये वक्त के पड़ाव मे,
नजर जब भी पड़ेगी,हम तो कुछ बस खास देंगे,
यूँ ही हम मुस्कुरा कर, कुछ नया अहसास देंगे,
कहेंगे देर हो रही है,अब तो चलते है,
भला सड़को पे भी,कुछ दोस्त अब तो मिलते है,
खुशी उन्माद मे हम,घर तो चले जायेंगे,
कोई पूछेगा तो, क्या उन्हे बतायेंगे,
कहेंगे वन सावन,फूल कोई है ही नहीं,
यही कहकर हम अपनी,आदतें छुपायेंगे, 
अंधेरे वक्त मे भी गीत गाये जायेंगे!

©Bhola Kumar Barnawal #bbkumaranand