डूबता सूरज उगता चाँद ढलता दिन या ढलती रात बनता घर या गिरता घर बुढापा हो या बालापन आदि अंत लगे एक रंग विधाता ही बनता है विधाता ही नशाता है कलाकारी जो देखो तो एक ही हाथ नजर आता है ©दीपेश #ओरछोर #मध्ये