टुकड़ों-टुकड़ों में कोई जी रहा है कोई मुफ़लिसी में भी आबाद है इतना हैरान ये ज़माना क्यूं है ये तो इश्क की बस शुरूआत है... देखो तेरे इश्क में मेरा क्या हाल हुआ है क्यों अनसुनी मेरी हर फ़रियाद है अपने ही हाथों मैनें ये जाल बुना है और इल्ज़ाम है आशिकी ख़राब है... Challenge-165 #collabwithकोराकाग़ज़ आज फिर आपको दो विषय दिए जा रहे हैं कोलाब करने के लिए। तो बताइए समूह को कि इश्क़ से पहले और इश्क़ के बाद क्या होता है। दोनों विषय एक लेखक भी लिख सकता है या फिर एक विषय पर लिखकर दूसरे लेखक को आमंत्रित कर सकता है। कोई शब्द सीमा नहीं है और जितने चाहो कोलाब कीजिए और जितनी चाहो काॅमेंट। परन्तु जितने कोलाब उतनी काॅमेंट। (Font=Eczar=13)