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सरहद ---------------- वो खड़ा था सरहद पर कफ़न बां

 सरहद
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वो खड़ा था सरहद पर कफ़न बांध कर
जान कुर्बान वतन पर ये बात जान कर...
थी निगाहे हर पल दुश्मन पर उसकी
मां से बड़ी भारत मां, मां की बात मान कर...

सोचता था क्यों ये सरहद बांट दी
भारत मां कई हिस्सों में बांट दी...
सभ्यता, संस्कृति,तीज त्यौहार
भाई से बहन, मां से बेटी बांट दी...

कोन जिम्मेदार रहा होगा इन सबका
भोली जनता तो सियासत से अन्जान थी
वो सोचता दिन रात था बस यही था
तभी नापाक दुश्मन ने बन्दूक दाग दी...

पल भर ना लगी संभलने में उसको
वो दुश्मन को भरपूर ज़वाब देने लगा...
हर तरफ सरहद पर खूनी खेल था
वो मौत का आशिक दिखाई देने लगा...

पल भर में कर दुश्मन का सफाया
वो बस वन्दे मातरम कहता था...
मां भारती का लाल दुलारा
हर मां के दिल में रहता था....

©Dr Vishal Singh Vatslya
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