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Environment प्रकृति - मैंने सबको जीवन दिया.. ,हुए

Environment प्रकृति - मैंने सबको जीवन दिया..
,हुए पुराने तो नवजीवन किया..
धरा को हरा किया,भरा किया,
 कण कण का सृजन किया...
सब कुछ हमसे ही हैं,
सब कुछ हम में ही हैं.
मैं हूं तो तुम हो, मैं हूं तो जहां हैं...
मैं ना रहूं, तो भला कोई कहां हैं...
पर बदले में हमको,सबने दगा दिया..
भौतिकता में चूर,हमको दूर भगा दिया...
काट रहे हो हमको, मार रहे हो हमको..
क्या सब भूल गए,जो दिया था मैंने तुमको..
क्या कसूर हैं मेरा,जो सहना पड़ रहा है..
मेरे ही घर से,मुझे उखड़ना पड रहा है..
इतने निर्दई बन बैठे हो,जो हर उपकार को भुला दिया..
उस पार क्या चले गए,इस पार को भुला दिया...
बस  करो अब रहने दो,ऐसे हमको बर्बाद मत करो...
काट कर,मार कर,दूषित कर,अपने को आबाद मत करो..
अगर मैं खतम हुई,तो तुम भी कहां रह पाओगे..
सारी अकड़ धरी रह जाएगी,तुम सब केवल पछताओगे..
अब भी बारी हैं,माफ करूंगी,लौट चलो तुम सब के सब..
फिर से मुझको हरा कर दो, बरना बेमौत मरोगे सब के सब।।।

©RUPESH KUMAR PANDEY,(poet/social activist) ###Rk (gyanpuri)

#EnvironmentDay2021
Environment प्रकृति - मैंने सबको जीवन दिया..
,हुए पुराने तो नवजीवन किया..
धरा को हरा किया,भरा किया,
 कण कण का सृजन किया...
सब कुछ हमसे ही हैं,
सब कुछ हम में ही हैं.
मैं हूं तो तुम हो, मैं हूं तो जहां हैं...
मैं ना रहूं, तो भला कोई कहां हैं...
पर बदले में हमको,सबने दगा दिया..
भौतिकता में चूर,हमको दूर भगा दिया...
काट रहे हो हमको, मार रहे हो हमको..
क्या सब भूल गए,जो दिया था मैंने तुमको..
क्या कसूर हैं मेरा,जो सहना पड़ रहा है..
मेरे ही घर से,मुझे उखड़ना पड रहा है..
इतने निर्दई बन बैठे हो,जो हर उपकार को भुला दिया..
उस पार क्या चले गए,इस पार को भुला दिया...
बस  करो अब रहने दो,ऐसे हमको बर्बाद मत करो...
काट कर,मार कर,दूषित कर,अपने को आबाद मत करो..
अगर मैं खतम हुई,तो तुम भी कहां रह पाओगे..
सारी अकड़ धरी रह जाएगी,तुम सब केवल पछताओगे..
अब भी बारी हैं,माफ करूंगी,लौट चलो तुम सब के सब..
फिर से मुझको हरा कर दो, बरना बेमौत मरोगे सब के सब।।।

©RUPESH KUMAR PANDEY,(poet/social activist) ###Rk (gyanpuri)

#EnvironmentDay2021