जब टूटे दिल को देख काटे दिन-रैन ख़ुुदपे चिखने चिल्लाने में, तभी लोग बावला सोच ले गये हमें पागलखाने में; अब कैसे समझाएँ उन सबको... मिली नहीं है कभी इतनी राहत किसी दवाखाने में, जितनी मिली है तसल्ली बस इसी मयखाने में। Importance of self relief from frustration