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तेरी मेरी उन मुलाकातो को याद करता हूँ। घण्टो होने

तेरी मेरी उन मुलाकातो को याद करता हूँ।
घण्टो होने वाली उन बातों को याद करता हूँ।
याद करता हूँ तेरे साथ बिताए लम्हो को,
तेरे मुझ पर उड़ेले उन जज्बातों को याद करता हूँ।
सोचता हूँ कि क्या इसे ही तलब कहते है?
या फिर हीर रांझा कभी एक दूसरे से अलग रहते है?
जवाब ढूढते ढूढते तेरी उस हँसी को याद करता हूँ,
और फिर मेरे अल्फ़ाज़ तेरी खूबसूरती की कहानी कहते है।
खैर कही ना कही तलब तो है तेरे साथ की
तलब तो है मुझे तुझसे बार बार मुलाकात की
तलब तो मुझे तेरे आगोश में होश खोने की भी है,
मानो जैसे ये तलब हो चाँद को रात की।
अब भी तेरी ज़ुल्फो के बिखरने की तलब है...
तेरी बाहों में वक़्त गुजरने की तलब है...
तलब है तेरी उन बच्चो जैसी जिदो को पूरा करने की,
अब तो तेरे साथ जीने मरने की तलब है।
पता है मुझे तू मेरे पास रहकर भी मुझसे दूर है।
चिंता ना कर अभी किस्मत को शायद खुद ओर गुरूर है।
कुछ दिन बाद फिर से बाते और मुलाकाते होगी,
तू जितनी तन्हा है उतना ये 'काफिर' भी मजबूर है।
#काफ़िर
 तलब
#तलब #इश्क़ #कविता #nojoto #nojotopoetry
तेरी मेरी उन मुलाकातो को याद करता हूँ।
घण्टो होने वाली उन बातों को याद करता हूँ।
याद करता हूँ तेरे साथ बिताए लम्हो को,
तेरे मुझ पर उड़ेले उन जज्बातों को याद करता हूँ।
सोचता हूँ कि क्या इसे ही तलब कहते है?
या फिर हीर रांझा कभी एक दूसरे से अलग रहते है?
जवाब ढूढते ढूढते तेरी उस हँसी को याद करता हूँ,
और फिर मेरे अल्फ़ाज़ तेरी खूबसूरती की कहानी कहते है।
खैर कही ना कही तलब तो है तेरे साथ की
तलब तो है मुझे तुझसे बार बार मुलाकात की
तलब तो मुझे तेरे आगोश में होश खोने की भी है,
मानो जैसे ये तलब हो चाँद को रात की।
अब भी तेरी ज़ुल्फो के बिखरने की तलब है...
तेरी बाहों में वक़्त गुजरने की तलब है...
तलब है तेरी उन बच्चो जैसी जिदो को पूरा करने की,
अब तो तेरे साथ जीने मरने की तलब है।
पता है मुझे तू मेरे पास रहकर भी मुझसे दूर है।
चिंता ना कर अभी किस्मत को शायद खुद ओर गुरूर है।
कुछ दिन बाद फिर से बाते और मुलाकाते होगी,
तू जितनी तन्हा है उतना ये 'काफिर' भी मजबूर है।
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 तलब
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