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मैं अक्सर रात निहारने निकलता हूँ, कि मैं चाँद से र

मैं अक्सर रात निहारने निकलता हूँ,
कि मैं चाँद से रूबरू हो पाता हूँ।
और वो मुझे तुम्हारी याद दिलाता है।
और तुम्हारी याद ही तो है जो उस रात को ख़ूबसूरत बनाती है। 
-दी ईरिस्पान्सिब्ल मेवरिक रात और तुम्हारी याद का अलग नशा है...
मैं अक्सर रात निहारने निकलता हूँ,
कि मैं चाँद से रूबरू हो पाता हूँ।
और वो मुझे तुम्हारी याद दिलाता है।
और तुम्हारी याद ही तो है जो उस रात को ख़ूबसूरत बनाती है। 
-दी ईरिस्पान्सिब्ल मेवरिक रात और तुम्हारी याद का अलग नशा है...

रात और तुम्हारी याद का अलग नशा है...