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'आसिफा' अब तुम इस जहां में फिर दुबारा ना आना, जब त

'आसिफा' अब तुम इस जहां में फिर दुबारा ना आना,
जब तक हैवानों का मिट न जाये दुनिया से ठौर-ठिकाना।



(पूरी व्यथा अनुशिर्षक में है। या तो पूरा पढ़ियेगा या फिर दूर रहियेगा इस रचना से) ये ऊपर लिखी दो पंक्तियाँ तो बस शुरुआत है।
मेरे दिल की पूरी व्यथा अब नीचे पढ़िए।
Anu एक कोशिश है आपके उस मन के चित्र को रूप देने की। पता नहीं, कितना सफल हो पाऊँगा पर ये रचना आपको समर्पित करता हूँ, उस रचना के लिये जो अभी आपने कुछ देर पहले लिखी, और जिसने मुझे लिखने के लिए मज़बूर कर दिया।

**********************
समाज के ठेकेदार हो तुम,
सामाजिकता के पर्याय हो तुम।
समाज की रक्षा करने वाले,
'आसिफा' अब तुम इस जहां में फिर दुबारा ना आना,
जब तक हैवानों का मिट न जाये दुनिया से ठौर-ठिकाना।



(पूरी व्यथा अनुशिर्षक में है। या तो पूरा पढ़ियेगा या फिर दूर रहियेगा इस रचना से) ये ऊपर लिखी दो पंक्तियाँ तो बस शुरुआत है।
मेरे दिल की पूरी व्यथा अब नीचे पढ़िए।
Anu एक कोशिश है आपके उस मन के चित्र को रूप देने की। पता नहीं, कितना सफल हो पाऊँगा पर ये रचना आपको समर्पित करता हूँ, उस रचना के लिये जो अभी आपने कुछ देर पहले लिखी, और जिसने मुझे लिखने के लिए मज़बूर कर दिया।

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समाज के ठेकेदार हो तुम,
सामाजिकता के पर्याय हो तुम।
समाज की रक्षा करने वाले,